आशिक – कुमार रंजन

कविता

तुम्हारी फिदरत नहीं मुझे पिघलाने की
मै तेरी इस आदाओ पर पिघल जाता हूं
तू सोच नही सकती ऐसा आशिक हूं मैं
तेरे इस निगाहों पर मै मर जाता हूं।

ये राह चाह नहीं मेरा
तेरे घर का रास्ता ढूंढता रहता हूं
तेरे घर का रास्ता कई आशिकों का है
ये भीड़ में मै भी खड़ा रहता हूं

चूल बुल सी बाते तेरी
तेरी हर बात, हर रात याद करता हूं
तू भी मुझे याद करती होगी
ऐसा मै हर बार, हर रात सोचता हूं।

इश्क के कक्षा में तुम्हारा भी मुबारक
ऐसी मै तुमसे आकांक्षा करता हूं
प्रेरणा मिलती है मुझे प्रेरणा से
इसलिए हर तेरी बात में, उसे याद करता हूं।

और
दस्तक होगा तुम्हारे दिल पर किसी और का
ऐसा भी मै स्वीकार करता हूं
प्रयाश करने में कुछ जाता नहीं मेरा
इसलिए मैं तुमसे और इतवार करता हूं।

तुम्हारी फिदरत नहीं मुझे पिघलाने की
मै तेरी इस आदाओ पर पिघल जाता हूं
तू सोच नही सकती ऐसा आशिक हूं मैं
तेरे इस निगाहों पर मै मर जाता हूं।

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