मर ही तो रहे है

कविता

रोज का है नया आस
उम्मीद जोरदार है
फोर देंगे उसको हम
यहीं बर्दाश्त है
क्या करें बताओ यारो
सर हीं तो रहे है
अजी, मर ही तो रहे है….

कभी मास्टर का तांडव तो
कभी मन का मन मौजी है
जब मान ले इसका बात हम तब
राजनीतिज्ञ का कसौजी है
दिन उसका होगा या उनका
मुझे तक पता न है
अब तुम भी सुन लो मेरी
लर हीं तो रहे है
अजी, मर हीं तो रहे है।

जब जबाव न दू उनको तो
घमंडी बन जाते है
उनकी सुनो तो
पाखंडी बन जाते हैं
लोगों के सामने हम तो
मंदिर का घंटी बन जाते है
काम हो जाता उनका तब
हम डस्टबिन बन जाते है
अब क्या चलना मित्रों
चल ही तो रहें है
अजी, मर ही तो रहे है।

प्रयास है जारी मेरा
फिर भी विफल हो जाते
विषय वस्तु को हम शायद
थोड़ा भी न भाते हैं
जिसको चाहता दिलो जान से
उसका एटीएम ही तो है
क्या दुःख सुनना आपको
छल हीं तो रहे है
अजी, मर हीं तो रहे है।

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