मकान है, दुकान है
चारों तरफ लोग परेशान है
विद्यार्थी का यहां पर
न कोई गान है , न गुणगान है
गजब सा ये शहर है साहब
पैसा वाले का हीं सिर्फ
यहां पहचान है……
नया हूं इस शहर में मै
विद्यार्थी हूं, गुमनाम हूं
किसी से पहचान क्या बनाऊं
यहां हूं बदनाम हूं
शहर में पहली बार कदम रखा हूं
विद्यार्थी हूं, परेशान हूं ……
उठता शूबह कोचीन को जाता
यहीं का बिका समान हूं
शुरू में वो बढ़िया बताते
लेकिन मै उनसे हलाल हूं
क्या बताऊं साहब जी
मै इस नये शहर में गुमनाम हूं……
अपना देश अलग था , भेस अलग था
अभी तो मै गुमनाम हूं
ये चार दीवारों में घिरा
मै खुद से हीं परेशान हूं
अपने कष्ट को रो कर भुल जाता
मै वैसा इंसान हूं…..
क्या बताऊं साहब
इस नए नगरी में मै
कितना परेशान हूं…
क्या बताऊं मै मेरे दिलवर
मै कितना हैरान हूं……..