दिल टूट रहा, टूटने दो

कविता

वो रूठ रहा, रूठने दो
वो जूझ रहा, जूझने दो।
ये प्रसाद नही, जो सबको मिले
दिल टूट रहा, टूटने दो।

भगोरा पर भरोसा हैं
भरोसा भी उम्मीद हैं
जिसे करना हैं करने दो
अगर चाहते हो मजबूती उनमें तो
उसे अकेला चलने दो।
वो अपना हीं है तो क्या
दिल टूट रहा हैं टूटने दो।

पैर बहुत है नाजुक सा
फोड़ा भी उसको होने दो
तुम चाहते हो, कठोरता तो
उसको भी अब घुटने दो
उम्मीद न था ऐसा होगा
दिल टूट रहा हैं टूटने दो।

पहल करेगा, महल मिलेगा
ये उम्मीद उसको भी दो
उम्मीद होती है झूठी तो क्या
झूठी ही उम्मीद उसको दो
इतना जल्दी कुछ नही होता
उसको भी आग में जलने दो

वो रूठ रहा, रूठने दो
वो जूझ रहा, जूझने दो।
ये प्रसाद नही, जो सबको मिले
दिल टूट रहा, टूटने दो।

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